परोक्षे कार्यहन्तारं प्रत्यक्षे प्रियवादिनम्।
वर्जयेत्तादृशं मित्रं विषकुम्भं पयोमुखम् ।।
जो पीठ पीछे कार्य को बिगाड़े और सामने होने पर मीठी-मीठी बातें बनाए, ऐसे मित्र को उस घड़े के समान त्याग देना चाहिए जिसके मुंह पर तो दूध भरा हुआ है परंतु अंदर विष हो। ।।1।।
जो मित्र सामने चिकनी-चुपड़ी बातें बनाता हो और पीठ पीछे उसकी बुराई करके कार्य को बिगाड़ देता हो, ऐसे मित्र को त्याग देने में ही भलाई है। चाणक्य कहते हैं कि वह उस बर्तन के समान है, जिसके ऊपर के हिस्से में दूध भरा है परंतु अंदर विष भरा हुआ हो। ऊपर से मीठे और अंदर से दुष्ट व्यक्ति को मित्र नहीं कहा जा सकता। यहां एक बात विशेष रूप से ध्यान देने की है कि ऐसा मित्र आपके व्यक्तिगत और सामाजिक वातावरण को भी आपके प्रतिकूल बना देता है।
न विश्वसेत् कुमित्रे च मित्रे चाऽपि न विश्वसेत्।
कदाचित् कुपितं मित्रं सर्व गुह्यं प्रकाशयेत् ।।
जो मित्र खोटा है, उस पर विश्वास नहीं करना चाहिए और जो मित्र है, उस पर भी अति विश्वास नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसा हो सकता है कि वह मित्र कभी नाराज होकर सारी गुप्त बातें प्रकट कर दे। ।।6।।
चाणक्य मानते हैं कि जो व्यक्ति अच्छा मित्र नहीं है उस पर तो विश्वास करने का प्रश्न ही नहीं उठता, परंतु उनका यह भी कहना उचित है कि अच्छे मित्र के संबंध में भी पूरी तरह विश्वास नहीं करना चाहिए, क्योंकि किसी कारणवश यदि वह नाराज हो गया तो सारे भेद खोल देगा।
आज बड़े-बड़े नगरों में जो अपराध बढ़ रहे हैं, जो कुकर्म हो रहे हैं, उनके पीछे परिचित व्यक्ति ही अधिक पाए जाते हैं। ‘घर का भेदी लंका ढाए’ – यह कहावत गलत नहीं है। जो बहुत अच्छा मित्र बन जाता है, वह घर के सदस्य जैसा हो जाता है। व्यक्ति भावुक होकर उसे अपने सारे भेद बता देता है, फिर जब कभी मन-मुटाव उत्पन्न होते हैं तो वह कथित मित्र ही सबसे ज्यादा नुकसान देने वाला सिद्ध होता है। ऐसा मित्र जानता है आपके मर्मस्थल कौन से हैं। घर में काम करने वाले कर्मचारी के बारे में भी इस प्रकार की सावधानी रखना आवश्यक है।
A friend who spoils your work behind your back and talks sweetly in front of you, should be abandoned like a pot which is filled with milk on the top but has poison inside. ।।5।।
A friend who talks sweetly in front of you and spoils your work by speaking ill of you behind your back, it is better to abandon such a friend. Chanakya says that he is like a pot which is filled with milk on the top but has poison inside. A person who is sweet from outside and evil from inside cannot be called a friend. One thing to be specially noted here is that such a friend makes your personal and social environment unfavorable to you.
A friend who is bad should not be trusted and even a friend who is good should not be trusted too much because it is possible that the friend may get angry and reveal all the secrets. ।।6।।
Chanakya believes that there is no question of trusting a person who is not a good friend, but he is also right to say that even a good friend should not be trusted completely, because if he gets angry for some reason, he will reveal all the secrets.
Today, the crimes that are increasing in big cities, the misdeeds that are happening, are mostly done by acquaintances. ‘The one who betrays the house destroys Lanka’ – this saying is not wrong. One who becomes a very good friend, becomes like a member of the family. A person emotionally tells him all his secrets, then whenever there is a rift, that so-called friend proves to be the most harmful. Such a friend knows which are your sensitive spots. It is necessary to be cautious about the employee working in the house as well.