आतुरे व्यसने प्राप्ते दुर्भिक्षे शत्रु-संकटे ।
राजद्वारे श्मशाने च यस्तिष्ठति स बान्धवः ।।
किसी रोग से पीड़ित होने पर, दुख आने पर, अकाल पड़ने पर, शत्रु की ओर से संकट आने पर, राज सभा में, श्मशान अथवा किसी की मृत्यु के समय जो व्यक्ती साथ नही छोड़ता, वास्तव में वही सच्चा बन्धु माना जाता है। ।।12।।
व्यक्ति के रोग शय्या पर पड़े होने अथवा दुखी होने, अकाल पड़ने और शत्रु द्वारा किसी भी प्रकार का संकट पैदा होने, किसी मुकदमे आदि में फंस जाने और मरने पर जो व्यक्ति श्मशान घाट तक साथ देता है, वही सच्चा बन्धु (अपना) होता है अर्थात ये अवसर ऐसे होते हैं जब सहायकों की आवश्यकता होती है। प्रायः यह देखा जाता है कि जो किसी की सहायता करता है, उसको ही सहायता मिलती है। जो समय पर किसी के काम नहीं आता, उसका साथ कौन देगा?
यो ध्रुवाणि परित्यज्य अध्रुवं परिसेवते ।
ध्रुवाणि तस्य नश्यन्ति अध्रुवं नष्टमेव हि ।।
जो मनुष्य निश्चित को छोड़कर अनिश्चित के पीछे भागता है, उसका कार्य या पदार्थ नष्ट हो जाता है। ।।13।।
चाणक्य कहते हैं कि लोभ से ग्रस्त होकर व्यक्ति को हाथ-पांव नहीं मारने चाहिए बल्कि जो भी उपलब्ध हो गया है, उसी में सन्तोष करना चाहिए। जो व्यक्ति आधी छोड़कर पुरी के पीछे भागते हैं, उनके हाथ से आधी भी निकल जाती है।
A person who accompanies a person till the cremation ground when he is suffering from a disease, when he is in pain, when there is a famine, when there is a crisis from the enemy, in the royal court, at the cremation ground or on someone’s death, is considered a true friend. 12. The person who accompanies a person till the cremation ground when he is lying on the bed of illness or is in pain, when there is a famine and when there is any crisis from the enemy, when he is trapped in a case etc. and when he dies, is a true friend (one’s own), i.e. these are the occasions when helpers are needed. It is often seen that the one who helps others, only he gets help. Who will support the one who is of no use to anyone at the right time? Yo Dhruvaani Parityajya Adhruvam Parisevaate. Dhruvaani tasya nashyanti adhruvam nashtameva hi।।
The person who leaves the certain and runs after the uncertain, his work or object gets destroyed.।।13।।
Chanakya says that a person should not be greedy and should be satisfied with whatever is available. Those who leave the half and run after the whole, even the half slips out of their hands.