अध्याय 2 श्लोक 4 , 5, 6

दुर्जनस्य च सर्पस्य वरं सर्पो न दुर्जनः।            सर्पों दंशति कालेन दुर्जनस्तु पदे पदे ।।



दुष्ट व्यक्ति और सांप, इन दोनों में से किसी एक को चुनना हो तो दुष्ट व्यक्ति की अपेक्षा सांप को चुनना ठीक होगा, क्योंकि सांप समय आने पर ही काटेगा, जबकि दुष्ट व्यक्ति हर समय हानि पहुंचाता रहेगा। ।।4।।

चाणक्य ने यहां स्पष्ट किया है कि दुष्ट व्यक्ति सांप से भी अधिक हानिकर होता है। सांप तो आत्मरक्षा के लिए आक्रमण करता है, परंतु दुष्ट व्यक्ति अपने स्वभाव के कारण सदैव किसी-न-किसी प्रकार का कष्ट पहुंचाता ही रहता है। इस प्रकार दुष्ट व्यक्ति सांप से भी अधिक घातक होता है।

एतदर्थ कुलीनानां नृपाः कुर्वन्ति संग्रहम्।आदिमध्याऽवसानेषु न त्यजन्ति च ते नृपम् ।।



राजा लोग कुलीन व्यक्तियों को अपने पास इसलिए रखते हैं कि वे राजा की उन्नति के समय, उसका ऐश्वर्य समाप्त हो जाने पर तथा विपत्ति के समय भी उसे नहीं छोड़ते। ।। 5

राजा लोग अथवा राजपुरुष राज्य के महत्वपूर्ण पदों और स्थानों पर उत्तम कुल वाले व्यक्तियों को ही नियुक्त करते हैं, क्योंकि उनमें उच्च संस्कारों तथा अच्छी शिक्षा के कारण एक विशिष्टता होती है, वे राजा के हर काम में सहायक होते हैं। वे उसकी उन्नति के समय अथवा सामान्य-मध्यम स्थिति में तथा संकट आने के समय भी साथ नहीं छोड़ते। कुलीन व्यक्ति अवसरवादी नहीं, आदर्शवादी होता है।

यदि इस बात को आज के संदर्भ में भी देखा जाए तो स्वार्थी और नीच कुल के व्यक्ति ही अपना स्वार्थ सिद्ध होने पर दल-बदल कर लेते हैं और अपने दल का साथ छोड़ देते हैं। परोक्ष रूप से चाणक्य लोगों को सचेत करना चाहते हैं कि सहयोगियों का चुनाव

करते समय कुल और संस्कारों का विचार अवश्य करना चाहिए।

प्रलये भिन्नमर्यादा भवन्ति किल सागराः।

सागरा भेदमिच्छन्ति प्रलयेऽपि न साधवः ।।



समुद्र भी प्रलय की स्थिति में अपनी मर्यादा का उल्लंघन कर देते हैं और किनारों को लांघकर सारे प्रदेश में फैल जाते हैं, परंतु सज्जन व्यक्ति प्रलय के समान भयंकर विपत्ति और कष्ट आने पर भी अपनी सीमा में ही रहते हैं, अपनी मर्यादा नहीं छोड़ते। ।।6।।

विशाल सागर बहुत गंभीर रहता है, परंतु चाणक्य धैर्यवान गंभीर व्यक्ति को सागर की अपेक्षा श्रेष्ठ मानते हैं। प्रलय के समय सागर अपनी सारी मर्यादा भूल जाता है, अपनी सभी सीमाएं तोड़ देता है और जल-चल एक हो जाता है, परन्तु श्रेष्ठ व्यक्ति अनेक संकटों को सहन करता है और अपनी मर्यादाएं कभी पार नहीं करता।

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