नियम योग

नियम योग: आध्यात्मिक सफलता की दिशा

नियम योग क्या है?

नियम योग, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, ध्यान, धारणा, और समाधि का एक प्रमुख अंग है जो पतंजलि के आठ अंगों में से एक है। यह योग के अन्य अंगों को संतुलित और साधन को अधिक प्रभावी बनाने के लिए आवश्यक है। नियम योग न केवल शारीरिक स्वास्थ्य को सुधारता है, बल्कि व्यक्तित्व के विकास और आत्मज्ञान की ओर प्रेरित करता है।नियम योग भारतीय दर्शन और योग शास्त्र का एक महत्वपूर्ण भाग है। इसे अष्टांग योग (Ashtanga Yoga) भी कहा जाता है, क्योंकि इसमें आठ अंग (अष्ट – “आठ” और अंग – “अंग” या “पहलू”) होते हैं। ये आठ अंग योग के अधिकांश पहलू होते हैं। नियम योग का प्रमुख उद्देश्य आत्मशुद्धि और आत्मविकास है। इसके माध्यम से व्यक्ति आत्मा के साथ जोड़ने और उसकी आवश्यकताओं को पूरा करने की प्रक्रिया में समर्थ होता है।

Mind control करने के लिए उसे नियमों के कड़े discipline में रखना चाहिए.

नियम योग का महत्व

नियम योग आत्मशुद्धि और संतुलन की दिशा में आत्मानुयायी है। इसके माध्यम से, व्यक्ति अपने जीवन को संयमित बनाने और अपनी आत्मा के साथ संबंध बढ़ाने के लिए अधिक तैयार होता है। यह योग साधक को नैतिकता, उत्साह, धैर्य, संयम, और निष्ठा के माध्यम से आत्मा के प्रकटीकरण की दिशा में ले जाता है।यह योगासन साधक को ध्यान, समर्पण और साधना के माध्यम से अपने आप को एकाग्र करने में मदद करता है। नियम योग में सिद्धि के लिए प्रतिष्ठापना, साधुता, आसन, प्राणायाम और ध्यान का अभ्यास किया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य संतुलन, स्वास्थ्य और आत्मा के शांति को स्थापित करना है।

नियम योग के अंग

  1. शौच (शुद्धि):                                                                                 शुद्धि दो प्रकार की है,  पहली   ब्राह्म शुद्ध और दूसरी आंतरिक शुद्धि! नियम योग का पहला अंग है शुद्धि  . शारीरिक और मानसिक शुद्धि के लिए महत्वपूर्ण है। शौच में भाषा, शरीर, और मन की आंतरिकशुद्धि की जाती है। इसमें विवेकपूर्ण खान-पान, स्नान, ध्यान, और साधना ब्राह्म शुद्धि मैं शामिल होते हैं। आन्तरिक शुद्धि से मन एकाग्रता तथा प्रसन्न रहता है,  इंद्रियां पर कंट्रोल होता है और आत्मा परमात्मा को जानने का सामर्थ्य भी प्राप्त कर लेता है. राग द्वेष,  ईर्ष्या, घृणा लोभ,  मोह जैसे मानसिक विकार मन को गन्दा कर हमें आंतरिक अशुद्ध करता है.
  2. संतोष Satisfaction:                                                                               अपने पास विद्यमान ज्ञान ,बल तथा साधनों से पूर्ण पुरुषार्थ करने के पाश्चात्य जितना भी आनंद विद्या , धन आदि फल रूप  मैं प्राप्त हो उतने मैं ही संतुष्ट रहना और अधिक की इच्छा न करना ही संतोष satisfaction हैं. संतोष अपनी स्थिति में संतुष्ट रहना है। यह अवधारणा सिखाती है कि संयमित जीवन की कीमत सबसे अधिक है। यह व्यक्ति को अपने जीवन को संयमित बनाए रखने के लिए प्रेरित करता है। पूरी शक्ति के साथ कर्म करना और उसका जो भी फल मिले उसे यथावत स्वीकार कर लेना ही संतोष है.
  3. तप:                                                                              धर्माचरण उतम,  कर्तव्य कर्मों को करते हुए भूख,  प्यास,  सर्दी गर्मी., लाभ हानि,  मान अपमान,  जय पराजय, आदि द्वंद को प्रसन्नता पूर्वक  सहन करना ही तप हैं.  नियम योग का तीसरा अंग है जो अन्यों की भलाई के लिए अपनी इच्छाशक्ति का उपयोग करने को कहता है। यह तापस्या, त्याग, और तपस्वीता की भावना को सजीव करता है। सत्य के मार्ग पर चलते हुए आने वाली सभी बाधाओं का धैर्य के साथ सामना करना ही तप है.
  4. स्वाध्याय:                                                                                       स्व यानी स्वयं और अध्याय यानी अध्ययन करना __आप का अध्ययन स्वाध्याय हैं.आत्मा शुद्धि वही कर सकता है  जो रोज रोज स्वम की गलतियों पर दृष्टी डाले और उनमे निरंतर सुधार करने का प्रयत्न करता रहे.                                                         मोक्ष की प्राप्ति करने वाले वेदादि सत्य शास्त्र को पढ़ना,  ओम यानी ईश्वर का आत्मा चिंतन करना ही स्वाध्याय हैं. अपने आप की अध्ययन और ध्यान की प्रक्रिया को सूचीबद्ध करता है। स्वाध्याय नियम योग में ज्ञान की प्राप्ति के लिए आवश्यक है।
  5. ईश्वर प्रणिधान:                                                                     , ईश्वर प्रणिधान का मतलब है भगवान के प्रति आत्मनिर्भरता और श्रद्धा। यह अपने जीवन को भगवान के हाथ में सौंपने की भावना को बढ़ाता है। ईश्वर को अपने अंदर बाहर मानकर और ईश्वर मेरे को देख,  सुन,  जान रहा हैं ऐसे भाव रखना और अपने आपको समर्पित करना ही ईश्वर प्रणिधान है.

नियम योग के लाभ

नियम योग के पालन से अनेक लाभ होते हैं। यह शारीरिक, मानसिक, और आध्यात्मिक स्वास्थ्य को सुधारता है और व्यक्ति को संतुलित और खुशहाल जीवन जीने में मदद करता है।

  1. शारीरिक लाभ: नियम योग के प्रैक्टिस से शारीरिक कठिनाइयों का सामना करने में मदद मिलती है। यह मानसिक और शारीरिक स्थिरता को बढ़ाता है और संतुलित और स्वस्थ जीवन की ओर ले जाता है।   
  2. मानसिक लाभ: योग के प्रैक्टिस से मानसिक स्थिति में सुधार होती है। यह तनाव, चिंता, और चिंतन को कम करता है और मानसिक शांति को बढ़ाता है।
  3. आध्यात्मिक लाभ: नियम योग आत्मा के साथ गहरा संबंध बनाने में मदद करता है। यह व्यक्ति को आत्म-ज्ञान और आध्यात्मिक उद्धारण की दिशा में ले जाता है।
  4. समर्थता: नियम योग साधक को अपनी इच्छाओं को प्राप्त करने की समर्थता प्रदान करता है और उसे अपने लक्ष्यों को हासिल करने में मदद करता है।
  5. आत्मसंयम: नियम योग के अभ्यास से साधक अपनी इच्छाओं को नियंत्रित करने में समर्थ होता है और अपने जीवन को संतुलित बनाए रखता है।

शौच, संतोष, तप, जप और प्यारे प्रभु का चिंतवन, यह पाँच नियम के प्रकार है। शरीर और मन की शुद्धी को शौच कहा है। अपने संस्कार के अनुसार जो कुछ मिल जावे उसमें आनंद मानना उसको संतोष कहा है।

चान्द्रायणादिक व्रत आदि भलि प्रकार से करना उसको तूप कहते है। प्यारे भगवान के पवित्र नाम का बार-बार उच्चारण करना इसको जप कहते है। प्रेम भाव से आदर के साथ सर्वकाल मन के साथ ‘मेरा प्रभू सब में है ऐसा जो स्मरण करके ध्यान करते है उसको प्यारे प्रभु का चिंतवन कहते है।

शौच का पालन करने से अपने व पराये शरीर को मलीन देखकर ग्लानि या उपरामता होती है। सन्तोष से शान्ति का सुख मिलता है। तप करने से अनिमा आदि सिद्धी प्राप्त होती है। जप करने से प्यारे भगवान का समागम होता है और चिंतवन आराधना करने से समाधि प्राप्त होती है।

Conclusion

नियम योग एक आध्यात्मिक और शारीरिक संतुलन की दिशा में हमें ले जाता है। इसके अंगों का पालन करने से हम अपने जीवन को संतुलित, संयमित, और संवेदनशील बना सकते हैं। नियम योग वास्तव में एक उच्चतम मानव विकास का मार्ग प्रशस्त करता है और हमें आत्मज्ञान और समृद्धि की ओर ले जाता है। इसलिए, नियम योग हमारे जीवन का महत्वपूर्ण और अनिवार्य हिस्सा है। नियम योग एक प्राचीन और प्रमुख योगासन है जो साधक को एक संतुलित, सक्रिय और स्वस्थ जीवन की ओर ले जाता है। इसके अभ्यास से साधक की मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक उन्नति होती है और वह अपने जीवन को उत्तम बना सकता है। नियम योग के अभ्यास से साधक अपने आत्मा का अनुभव करता है और अपने जीवन को एक नई दिशा में ले जाता है।

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